अहोई अष्टमी की व्रत कथा व महत्व

राम राम जी .. 

काफ़ी दिनों बाद आज फिर कुछ लिखने का मन हुआ .. हुआ यू कि कल शाम को घर मे अहोई माता की कथा व व्रत के तैयारी चल रही थी अब बात आई यहाँ देश से हज़ारों मिल दूर व्रत कथा व अहोई माता की तस्वीर कैसे बनाए और जैसा आपको पता है कि अब चाहिए तो चाहिए वैसे भी तीज-त्यौहार मनाने मे कोई समझौता नही करते है बाकि घर घर की कहानी है .. 
वैसे तो आजकल इंटरनेट पर सब कुछ मिल जाता है मगर बात फिर वही की घरेलू तौर तरीक़े कैसे पता लगे . मुझे फिर एहसास हुआ कि मेरे जैसे न जाने कितने परिवार है जे देश-प्रदेश से दूर है व उनके मन मे भी यही उत्सुकता होती होगी को सोचा चलो अब फिर टिक टिक करके लिखा जाए ..

अकसर मेने बचपन मे घर पर व्रत विधि को देखा है तो मिली जुली जानकारी व इंटरनेट की मदद से लेख लिखा चलिए अब प्रारम्भ करते है महत्व ,विधि व कथा ...


अहोई अष्टमी व्रत का महत्व .. 


अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है यह व्रत विशेष तौर पर माताओं द्वारा अपनी संतान विशेषकर पुत्र सन्तान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है। जिन जातकों की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो, बार-बार बीमार पड़ते हों या किसी भी कारण माता-पिता को अपने संतान की ओर से स्वास्थ्य व आयु की दृष्टि से चिंता बनी रहती हो, इस पर्व पर संतान की माता द्वारा समुचित व्रत व पूजा आदि का विशेष लाभ प्राप्त होता है तथा संतान स्वस्थ होकर दीर्घायु को प्राप्त करती हैं। जिन दम्पत्तियों के पुत्र नहीं बल्कि पुत्री सन्तान है, वे भी अहोई माता की पूजा कर सकती हैं! सन्तान की कामना वाली महिलाएं भी यह व्रत रखकर अहोई माता से सन्तान प्राप्ति की प्रार्थना कर सकती हैं! लेकिन यह भी नियम है कि एक साल व्रत लेने के बाद आजीवन यह व्रत टूटना नहीं चाहिए! कुछ लोगों की धारणा है कि सिर्फ सपूतों के लिए ही व्रत रखा जाता है। मगर ऐसा नहीं है। आज के बदलते दौर में पुत्री भी माता पिता के लिए बराबर की मान्यता साकार करती हैं तो पुत्रियों के सुख सौभाग्य के लिए भी अहोई माता कृपालु होती हैं।


अहोई अष्टमी पूजा विधि ..
अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं तथा साथ ही सेह और उसके बच्चों का चित्र भी बनाते हैं। सन्ध्या समय लगभग आरती के समय के उपरान्त मां का पूजन करने के बाद अहोई माता की कथा सुनते हैं। पूजा के बाद सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर बाहर आकाश में दीपक अर्पित करके तारों की पूजा कर जल चढ़ाते हैं। इस दौरान ओम जय अहोई माता का जाप भी करते हैं। अष्टमी का चांद देखने के उपरान्त व्रत पूजन पूरा हो जाता है और इसके पश्चात व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करना होता है। पूजा के उपरान्त इस दिन लाल धागे की रक्षा बांधकर पुत्र अथवा पुत्री को दीर्घायु का आशीर्वाद देना चाहिए! 

अहोई अष्टमी की व्रत कथा 
प्राचीन काल में एक साहूकार रहा करता था। साहूकार की पत्नी चंद्रिका बहुत गुणवती थी। साहूकार की  बहुत संताने थीं। वह अपने परिवार के साथ सुख से जीवन यापन कर रहा होता है। एक बार साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में जाती है और कुदाल से मिट्टी खोदने लगती है, परंतु उसी जगह एक सेह की मांद होती है और अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग जाती है जिससे सेह के बच्चे की मृत्यु हो जाती है।

इस घटना से साहूकार की पत्नी को बहुत दुख होता है। मन में पश्चाताप का भाव लिए वह घर लौट जाती है। परंतु कुछ दिनों बाद उसकी संतानें एक-एक करके मरने लगती हैं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति पत्नी दुखी रहने लगते हैं। बच्चों की शोक सभा में साहूकार की पत्नी विलाप करती हुई उन्हें बताती है कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नहीं किया लेकिन एक बार अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी।

यह सुनकर औरतें साहूकार की पत्नी को दिलासा देती हैं और उसे अष्टमी माता की पूजा करने को कहती हैं। साहूकार की पत्नी दीवार पर अहोई माता और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर माता की पूजा करती है और अहोई मां से अपने अपराध की क्षमा-याचना करती है। तब मां प्रसन्न हो उसकी होने वाली संतानों को दीर्घ आयु का वरदान देती हैं। तभी से अहोई व्रत की परंपरा प्रचलित हो गई।

अहोई माता की कृपा पर एक कथा और भी है... एक दन्तकथा के अनुसार, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती हैं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं।

छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार! तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है। अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई माता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको  मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निश्कंटक जीवन का सुख मिलता है!
जय राम जी की ..

बैठे बैठे मन मे आया ...

आख़िर किसकी आड़ मे पनप गया वो पेड़ ,जो अब कड़वे फल देने लगा,
अरे सारे जहाँ से अच्छा है मेरा हिन्दुस्तान,कोई रोको कयोकि अब अफ़वाहों पर क़त्लेआम  होने लगा.

Father's Day 21 June memorable day !

Happy Fathers Day  June 21...Feeling proud .. Celebrating together being Son and Father ..joy it :) 
God blessed me a baby boy few days  before and enable opportunities to celebrate this Father's Day in unique , memorable style  as being son and father together.. 
Can not express my happiness in words but in simple and plain i must say feeling awesome and very proud ...

क्यों है ख़ास महारा हरियाणा

हरयाणा (हरियाणा )खास क्यों हैं...???

जैसा हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता है.....

वैसा मेरा हरयाणा नहीं है ........!

हिंदी सिनेमा जगत में हरयाणा को माफिया लोगो का अड्डा - गुंडा राज दिखा कर... हरयाणा की छवि लोगों ने खराब बना दी है.....!!

जैसे हरयाणा में लड़की रोड पर अकेले नहीं निकल सकती... 

एक शरीफ इन्सान...यहाँ नहीं रह सकता...!!

हरयाणा हर बात में गाली का इस्तेमाल करता हैं
 लेकिन .......

सच तो सच है....??? देखिये ...

1. हमारे राज्य में बलात्कार के
 मामले दिल्ली के मुकाबले... 1/10 है.......
जबकि आबादी दिल्ली से कई
 गुना अधिक...!!

2. दंगो में हज़ारो लोग यूपी 
 में मारे गए हैं हरयाणा में 1 भी नहीं ..!!

3. मर्डर भी 1/2 है
 मुंबई से... कही कम ही..!!

4. हमें बेबकूफ समझा जाता है...तो दोस्त सुनो हमारा हरयाणा अकेले इतने
 सैनिक देश को देता है जितना केरला, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात मिलकर भी नहीं दे पाते.....!!

5. कर्नल सूबेदार सबसे ज्यादा हरयाणा से है...!!

6. उच्च शिक्षण संस्थानों में हरयाणावी इतने हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात
 मिलाने से भी बराबरी नहीं कर सकते.........

7. हरयाणा अकेला ऐसा राज्य है जहाँ किसान कृषि कारणों से आत्म-
हत्या नहीं करतें जैसा कि मीडिया दिखाता है क्यूकि हरियाना में बुज़दिल नही दिलेर पैदा होते है...!!

8. आज भी हरयाणा में सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार है...!!

9. हम एक रिक्शा चलाने
 वालों को भी भाई कह कर
 बुलाते हैं...!!
10. खेलो मे सबसे अधिक व अच्छा प्रदर्शन कर देश का नाम सर्वोपरि रखा है 

11. आय मे देश मे सबसे आगे 

12. कृषि क्षेत्र मे अग्रणी ....

 " मैं हरयाणा से हूँ " और हरयाणा से ज्यादा महफूज अपने आप को कहीं नहीं पाता... हमारे लोगों ने
 कभी किसी राज्य के लोगों का विरोध नहीं किया... किसी सम्प्रदाय को नही दबाया....दुसरे प्रदेश  में दंगे होते रहते है हरयाणा में धर्म के नाम पर कभी दंगा नही हुआ ।
 यहाँ संस्कार बसतें है...!!.
 .
मुझे नाज है मैं हरयाणा से हूँ
 हरयाणा मेरे रगों में
 बसता है...!!!

जय हरयाणा.....

आख़िर क्या है सरदार जी के 12 बज गये की कहावत

राम राम जी , मैं अनिल पाराशर फिर से एक नये व्यवहारिक दिनचारित बातो पर एक आलेख के साथ जानकारी सीमित थी मगर मिला जुलाकर जुटाने की कोशिश कि है कुछ अधूरा व ग़लत लगे तो अवश्य कमेंट मे लिखे मै इसे सँवारने की कोशिश करूँगा अकसर हम लोग आपस मे कहते व सुनते है  “सरदार जी के बारह बज गए”  ज्यादातर लोगों को लगता है की सरदार के ठंडे भाव-भंगिमाओं के कारण ही इस फ्रेज का लोग इस्तेमाल करते हैं । आज मैं अनिल पाराशर आपको बताने की कोशिश करूँगा  हैं कि कहावत के पीछे की हकीकत क्या है

सतरहवी शताब्दी में जब देश में मुगलों का अत्याचार चरम पर था,बहुसंख्यक हिन्दुओं को धर्म-परिवर्तन के लिए अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं,औरंगजेब के काल में ये स्थिति और बदतर हो गयी । मुग़ल सैनिक,धर्मान्तरण के लिए हिन्दू महिलाओं की आबरू को निशाना बनाते थे ।अंततः दुर्दांत क़त्ल-ए-आम और बलात्कार से परेशान हो कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर में सिखों के नवमे गुरु तेग बहादुर से मदद की गुहार लगाई.

गुरु तेग बहादुर ने बादशाह ‘औरंगजेब’ के दरबार में अपने आपको प्रस्तुत किया और चुनौती दी कि यदि मुग़ल सैनिक उन्हें स्वयं इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहे तो अन्य हिन्दू सहर्ष ही इस्लाम अपना लेंगे । जैसा आपको पता भी होगा कि औरंगजेब बेहद क्रूर था,मगर अपनी कौल का पक्का व्यक्ति था,गुरु जी उसके स्वभाव से परिचित थे । गुरूजी के प्रस्ताव पर उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी । गुरु तेग बहादुर और उनके कई शिष्य मरते दम तक अत्याचार सहते हुए शहीद हो गए,पर इस्लाम स्वीकार नहीं किया । इस तरह अपने प्राणों की बलि देकर उन्होंने बांकी हिन्दुओं के हिंदुत्व को बचा लिया  और इसी कारण उन्हें “हिन्द की चादर” से भी जाना जाता है

उनके बाद,सुयोग्य बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए आर्मी का निर्माण किया,जो कालांतर में ‘सिख’ के नाम से जाने गए ।

एक बार आक्रमणकारियों ने हज़ारों भारतीय महिलाओं बंधक बना लिया.तब सरदार जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे,जस्सा सिहं ने इन लुटेरों पर हमला करने की योजना बनायी । परन्तु उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी इसलिए उन्होंने आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया ।महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने,कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया । सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया.


यही योजना बाद मे भी जारी रही । अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में,सभी समुदाय की औरतों को बेंचना शुरू कर दिया.तब एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए बहुत सारी महिलाओं को बचा लिया ।सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की ।

 रात 12 बजे के समय में हमला करते समय लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए”

सरदार  सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा । गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है


सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोविंद सिंह कहलाऊं

दोस्तों ऐसी वीरता,साहस और ईमानदारी के पर्याय सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है । बार बार दोहराना अनजाने में ही सही पर किसी देशद्रोह से कम नहीं है।

अंत मे यही कहूँगा 

सभी धर्म समुदाय का सम्मान करो 

बिना जाने ना किसी का उपहास करो

मिलजुल कर बेहतर ज़िंदगी का प्रयास करो ।


आज ज़रूरत है हरियाणवी संस्कृति के बचाव के पहल की

राम राम जी,

हाथ जोड़कर अपील हरियाणा संस्कृति को बचाने की पहल की !यही पोस्ट हरियाणवी संस्कृति के बचाव में फ़ेसबुक पर भी कई अन्य पेज एडमिनो ने भी की है 

कोए दिक्कत होतो ईनबॉक्स व कमेंट  करो  ...और पेजा आले भाईयाँ तै रिक्वेस्ट करू सू के जै एग्री सो तो कॉपी करो,,,,शेयर करो

आजकाल आळे सिंगरा नै हरयाणवी कलचर का कति बठ्ठा बठा दिया......जमा भोजपुरी गाणे काढ़ण लाग गे....
बाहर कित्ते बजाण म भी भूंडी शर्म आवै सै....ईनका म्यूजिक सुण कै दूर तै ए माणस बता देगा के चाहे तो हरयाणवी गाणा सै या फेर भोजपुरी...

घर गेल सिंगर पाक रहे सै हर गाणा आता नहीं बैंगण बरगा भी
बस अपणी माँ बोली की बेज्जती कर राखी सै साळ्या नै....

एक ईनकी विडीयो का लेवल देख ल्यो...किते बाहर के माणस तै तो दिखाती हाण भी शर्म आवै सै

ऊपर तै गाणे म अपणा भी,भाई का भी,लिरिक्स आले का भी,म्यूजिक आले का भी...सबका नाम ले देंगे

रै बणाओ तो ढ़ंग का बणाए...ना टाल मारो
क्यू अपणे कल्चर की ईसी तिसी करो सो 

ये गिणे चुणै दो चार सिंगर सै जो हरयाणवी कल्चर नै थाम रहे सै...

सबसे असली बात...

कम्पीटीशन होया करते रागनियाँ के....बढ़िया आले
गलत बात भी बोल दिया करते पर वा सिर्फ समझदार माणसा कै ए समझ म आया करती

आजकाल तो नाचण खातर लुगाई बुलवावै सै....के फर्क रहग्या थारे म अर जो मुजरा देखण जा सैं उनमैं... ये बाला तो इसी आई है नाश कर दिया कलचर का गंद मचा दिया 

वैसे थम लुगाई नचवाओ प्रोगरामां म....अर विरोध करो सन्नी लियोन का

हरयाणवी कल्चर उस ईतणी तळी तक चल्या ज्यागा....कदे अपणे बुजर्गा व महान कलाकारों  न सोची नही होगी ।।

मेरे तैरै बचपन की यादै

बचपन का टेम याद आ गया कितने काच्चे
काटया करते,
आलस ना था कदे भाजे भाजे हांड्या करते।

माचिस के ताश बनाया करते कित कित त ठा के
ल्याया करते
मोर के चंदे ठान ताई 4 बजे उठ के भाज जाया करते
 
ठा के तख्ती टांग के बस्ता स्कूल मे हम जाया करते,
स्कूल के टेम पे मीह बरस ज्या सारी हाना चाहया करते ।

मास्टर आज ना आवे रोज़ बात बनाया करते !
कविता गा के सुनाके पहड़े पिटन त बच जाया करते 

सरवे की क़लम अर दवात में पुडिया गेर स्याही बनाया करते 
जोहडा में भी तख्ती पोत ल्याया करते फिर बात बनाके सुखाया करते ,

नयी किताब आते ए हम असपे जिलद चड़ाया करते।
फेर सारा साल उस कहण्या फेर ना कदे लखाया करते ।

बोतल अर बेच कापी खाते आइसक्रीम हम बालां के मुरमुरे खाया करते ।
घरा म सबके टीवी ना था पड़ोसिया के देखन
जाया करते

ज कोए हमने ना देखन दे फेर हेंडल गेर के आया करते।

भरी दोफारी म डागर खोलके जोहड़ पे ले के
जाया करते ,
बैठ के ऊपर या पकड़ पूछ ने हम भी बड़ जाया करते 

खेता मे जा के फेर नलके टूबेल पे नहाया करते ,

चूल्हे ध्होरे बैठ के रोटी नूनी घी धर के खाया करते।
होती 
फेर सोनन की तयारी मैं दादा दादी पै कहानी सुना करते 

बिजली त कदे आवे ना थी बस बिजना हलाया करते ।
हल्की हल्की सी हवा चालती तो फेर
सो जाया करते ,
तड़के न जब आँख खुलती सारे ऊट्ठे पाया करते ।

दूसरी खाटा के गुददड़े बत्ती सीले से पाया करते ,
छोड़के अपनी खाट न दूसरी पे हटके सो जाया करते ।
बचपन का टेम याद आ गया कितने काच्चे काटया करते... 
मिली जुले शब्दों के  द्वारा बचपन को याद करण की कोशिश  ...! 

बैसाखी का त्यौहार Baisakhi festival in Punjab, Haryana & India

राम राम जी ! मैं अनिल पाराशर Anil Parashar बैसाखी के त्यौहार पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ देता हू ! 



बैसाखी एक है।उतरी भारत मे यह त्यौहार बैसाखी (मेक) नाम से पंजाब व हरियाणा में मनाया जाता है  जिसे देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले सभी के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। के अनुसार हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है।अब आप सोच रहे होगे कि अबकी बार 14 अप्रैल को क्यूँ ? वैसे कभी-कभी 12-13 वर्ष में यह त्योहार 14 तारीख को भी आ जाता है। रंग-रंगीला और छबीला पर्व बैसाखी अप्रैल माह के 13 या 14 तारीख को जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब मनाया जाता है।
भारत भर में बैसाखी का पर्व सभी जगह मनाया जाता है। इसे दूसरे नाम से भी कहा जाता है। कृषक इसे बड़े आनंद और उत्साह के साथ मनाते हुए खुशियों का इजहार करते हैं। बैसाखी मुख्यतः कृषि पर्व है। पंजाब व हरियाणा की भूमि से जब पककर तैयार हो जाती है तब यह पर्व मनाया जाता है। इस कृषि पर्व की के रूप में भी काफी मान्यता है।हरियाणा मे मैंने इस कहावत को किसानो से अकसर सुना है "मेक पाछै फ़सल एकम एक "इंटरनेट व कुछ मित्रों से मिली जानकारी के अनुसार देश भर मे अलग अलग नाम से मनाया जाता है मेरी जानकारी के अनुसार बैसाखी किसी धर्म विशेष का नही बल्कि हर किसी का त्यौहार है केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के अन्य प्रांतों में भी बैसाखी पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन मेले लगते हैं। लोग श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं तथा उत्तर-पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी इस दिन बिहू का पर्व मनाया जाता ह उत्तर भारत में विशेष कर पंजाब व हरियाणा मे बैसाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक-युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। यह बात सत्य है कि सिखों का इस त्यौहार से विशेष संबंध है अतः बैसाखी आकर पंजाब के युवावर्ग को याद दिलाती है। साथ ही वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहां माता अपने दस गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी। 
सिखों के दसवें ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में की नींव रखी थी। इसका 'खालसा' खालिस शब्द से बना है। जिसका अर्थ- शुद्ध, पावन या पवित्र होता है। खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोबिन्द सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था। 
इस पंथ के द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह ने लोगों को धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव छोड़कर इसके स्थान पर मानवीय भावनाओं को आपसी संबंधों में महत्व देने की भी दृष्टि दी। सिख धर्म के विशेषज्ञों के अनुसार पंथ के प्रथम गुरु नानक देवजी ने वैशाख माह की आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से काफी प्रशंसा की है। पंजाब और हरियाणा सहित कई क्षेत्रों में बैसाखी मनाने के आध्यात्मिक सहित तमाम कारण हैं। इस दिन सिख गुरुद्वारों में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। खेत में खड़ी फसल पर हर्षोल्लास प्रकट किया जाता है। बैसाखी पर्व के दिन समस्त उत्तर भारत की पवित्र नदियों में स्नान करने का माहात्म्य माना जाता है। अतः इस दिन प्रातःकाल नदी में स्नान करना हमारा धर्म हैं। मान्यता है कि गुरू गोविंद सिह जी ने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र (बाटे) से अमृत छका पाँच प्यारे सजाए। ये पाँच प्यारे किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे, वरन् अलग-अलग जाति, कुल व स्थानों के थे, जिन्हें खंडे बाटे का अमृत छकाकर इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा। 
हिंदुओं के लिए यह त्योहार नववर्ष की शुरुआत है। हिंदु इसे स्नान, भोग लगाकर और पूजा करके मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हजारों साल पहले देवी गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थीं। उन्हीं के सम्मान में हिंदू धर्मावलंबी पारंपरिक पवित्र स्नान के लिए गंगा किनारे एकत्र होते हैं।
केरल में यह त्योहार 'विशु' कहलाता है। इस दिन नए, कपड़े खरीदे जाते हैं, आतिशबाजी होती है और 'विशु कानी' सजाई जाती है। इसमें फूल, फल, अनाज, वस्त्र, सोना आदि सजाए जाते हैं और सुबह जल्दी इसके दर्शन किए जाते हैं। इस दर्शन के साथ नए वर्ष में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। ब्न्गाल मे इन ये त्योहार नभ बर्श के नम से मनाते हैं।
मैं अनिल पाराशर आपका धन्यवाद करता हू आपके क़ीमती समय के लिए व अपील करता हू संभव हो सके जितना त्यौहार बनाइये उतना व्यवहार बनाने के लिए ! मेरे इस लेख मे कुछ अधूरी जानकारी या कोई सुझाव हो तो कृपया मुझे लिखे मैं सम्मिलित करने की कोशिश करूँगा।जय राम जी की ! 

Turn ON or OFF Features Prompts .NET Framework 3.5 (included .NET 2.0 and 3.0)

How to Turn ON or OFF Features Prompts .NET Framework 3.5 (included .NET 2.0 and 3.0) When you are Online, connected to Internet.

In order to install the following window click on the .NET Framework 3.5 (included .NET 2.0 and 3.0) select it & click OK
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Now, it will download the entire package from the internet & install the .NET Framework feature.
Method 2: When you are Offline and not connected to Internet

If you open CMD.EXE with Administrative Privileges i.e. at elevated level & run the this DISM command dism /online /get-features you will see that from the State that .NET Framework is not part of the Operating System.


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Now you need to copy the required package to local machine before you run the command to install .NET Framework. To do that use Windows 8 ISO/DVD/USB Media. You need to copy SXS folder to local machine located at D:\sources\sxs (In this case D: your drive letter on which you have loaded Windows 8 Media)



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You can also use the following command to copy this folder locally. xcopy d:\sxs\*.* c:\sxs /s
Once completed, in order to install this feature you can run the following command dism /online /enable-feature /featurename:NetFx3 /All /Source:C:\sxs /LimitAccess  (Case sensitive ) and hit Enter


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After completing the installation of .NET Framework 3.5 you can see that the feature is enabled in the Control Panel –> Program and Features.


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With above mentioned method you can enable .NET Framework feature on Windows 8 without needing of an internet connection.

Cheers... Good luck :)



किसान की बात


राम राम जी ,मुझे गर्व कि एक किसान परिवार  मे जन्म लिया है अपने माता पिता व प्रिय जनों के अथक प्रयास ये यहाँ तक पहुँचा हू । रोज़ाना अखबारे व टीवी चैनलों पर खोखले वादे रेडियो पर मन की बात से किसानो के धाव कुरदते हुए देखता हू तो दादा जी की एक बात याद आती है !

"हर सरकार ने किसान को कहा है बैचारा
मगर आज तक किसी ने नही दिया सहारा"

मेनें तो किसान को हर समस्या से जूझता देखा है । किस प्रकार किसान को व उसके परिवार को प्रकृति की मार पर राजनेताओं के झूठे आश्वासनों पर गुज़र बसर करते देखा है ! 
आज सबको सिर्फ़ ये बात नज़र आती है कि किसानों के पास लाखों की ज़मीन है मगर ये भी कोई नही देख रहा की उसकी हालात फिर भी नही सुधर रही क़र्ज़ से पीछा नही छूट रहा है ।

मन की बात करने से किसानों की समस्या का रती पर भी समाधान नही है। यू कहो कि पहले साहूकार ज़मीन हड़प लेते थे अब सरकारें हड़पने मे लगी हुई है ! भूमि अधिग्रहण बिल पर पार्टियां राजनैतिक रोटी सेंक रही हैं या वाकई किसानो का भला करना चाहती हैं ? 

रैली और धरना देने के साथ साथ साफ़ करे जनता के सामने कि भूमि अधिग्रहण बिल वो कैसा चाहती हैं तब मामला साफ़ होगा अन्यथा एक छलावा ही है किसानों के साथ!..

साफ़ साफ़ शब्दों मे लिखू तो आज एक भी किसान अपने बच्चों को किसान नही बनने देना चाहता है । सरकार को किसानो के हित मे बहुत ज़रूरी क़दम उठाने की ज़रूरत है बग़ैर राजनीति व मन की बात किये !
कड़वे शब्दों मे कहूँ तो किसान व उसके परिवार को हीन समझा जाने लगा है ।हममें से कोई अपने आपको किसान के परिवार का हिस्सा नही बताता जबकि व कही न कही से हिस्सा है ।अभी भी वक़्त हा किसानो की हालात सुधारो देश का विकास वही से जुड़ा है किसान ही खाने को देता है उच्ची उच्ची इमारतें नही 

अभी हाल ही मे बारिश से तबाह हुई फ़सलो को मुआवज़े के लिए कही कही तो चिन्हित ही नही की गयी ज़मीनें और जहाँ की गयी है वहाँ सुनने मे आया है दो सौ रूपये के चेक ! श्रम सरकार को तो नही आती मगर किसान को ही आने लगी जिन्होंने मना कर दिया ।

जज़्बाती हू पर आपके क़ीमती समय के लिए तह दिल से धन्यवाद !

जय राम जी की ।

हनुमान जयंती पर विशेष लेख श्री हनुमान चालीसा सहित Shri Hanuman Chalisa

  श्री हनुमान जयंती पर विशेष लेख श्री हनुमान चालीसा सहित !

राम राम जी ,मैं अनिल पाराशर आप सभी को श्री हनुमान जयंती पर हाथ जोड़कर राम राम करता हूँ आज हनुमान जयंती पर भगवान श्री राम के परमभक्त हनुमान जी के विषय मे अपने परिवारजनों तथा अखबारो व इंटरनेट पर पढ़ने से मिली जानकारी पर फिर एक एक छोटा सा मिला जुला लेख लिखा रहा हू ,उम्मीद है आप को पसंद अायेगा । आइए प्रारंभ करता हू बोलो प्रभु श्री राम जी की .. जय । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है ।इस दिन भगवान श्री हनुमान जी की आराधना रोग, शोक व दुखों को हरकर विशिष्ट फल देने वाली होती है ।आइए मे आपको दर्शन करवाता हू बालाजी मेहंदीपुर मंदिर मे विराजित श्री परेतराज सरकार जी के।
व (Muscat,Oman )
मस्कट , ओमान मे विराजित बजरंग बली जी के दुर्लभ दर्शन ..!
ज्योतिषों के अनुसार हनुमानजी रुद्र अवतार स्वरूप माने जाते हैं। सतयुग से कलयुग तक प्रथम चरण विशेष में हनुमानजी की आराधना सकल मनोरथ पूर्ण करने वाली हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार रुद्र तथा रुद्र अवतार की साधना विशेष दिन करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, शनि तथा राहु के दोषों के निवारण के लिए हनुमान जी की आराधना विशेष मानी गई है।इस दिन श्री हनुमान चालीसा का जाप अवश्य करे ! 
।।श्री हनुमान चालीसा ।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बरनौ  रघुबर  बिमल जसु, जो दायकू फल चारि
बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||

             चोपाई 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा |
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ||

महाबीर बिक्रम बजरंगी|
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुंचित केसा ||

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे|
काँधे मूंज जनेऊ साजे||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन||

विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||

सुकसम रूप धरी सियहि दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
भीम रूप धरी असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||

लाय संजीवनी लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||

सहस बदन तुम्हरो जस गावे |
अस कही श्रीपति कंठ लगावे ||
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा|
नारद सारद सहित अहीसा ||

जम कुबेर दिगपाल जहा ते|
कबि कोबिद कही सके कहा ते||
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||

तुम्हरो मंत्र विभिषण माना |
लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र योजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जाणू ||

प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं|
जलधि लांघी गए अचरज नाहीं||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||

राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आग्यां बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||

आपन तेज सम्हारो आपे |
तीनों लोक हांक ते  काँपे ||
भुत पिशाच निकट नहिं आवे |
महावीर जब नाम सुनावे ||

नासै रोग हरे सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट से हनुमान छुडावे |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै||

सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावे |
सोई अमित जीवन फल पावे ||

चारों जुग प्रताप तुम्हारा |
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||

अष्ट सिद्धि नौनिधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||

तुम्हरे भजन राम को पावे |
जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||
अंत काल रघुबर पुर जाई |
जहा जनम हरी भक्त कहाई ||

और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेई  सर्व सुख करई||
संकट कटे मिटे सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||

जय जय जय हनुमान गोसाई |
कृपा करहु गुरु देव के नाइ ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटही  बंदी महा सुख होई ||

जो यहे पढे हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजै नाथ हृदये मह डेरा ||

                   दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप  |
राम  लखन  सीता  सहित , ह्रुदय बसहु सुर भूप ||

जय श्री राम । 

राम नवमी के पवित्र त्योहार की कथा व महत्व


मैं अनिल पाराशर आप सभी को रामनवमी के इस पवित्र त्योहार पर हाथ जोड़कर राम राम करता हूँ जिसके बहुत सारे लेख लिखेमगर आज भारत भगवान राम के विषय मे अपने परिवारजनों तथा अखबारो व इंटरनेट पर पढ़ने से मिली मेरी जानकारी पर दिल मे ख़याल आया एक छोटा सा मिला जुला एक लेख लिखने का,उम्मीद है आप को पसंद अायेगा। श्री रामनवमी, भगवान श्री राम को समर्पित पर्व है | श्रीरामचन्द्र जी के जन्म के कारण चैत्रशुक्लपक्ष नवमी श्री रामनवमी कहलाती है वेदों के अनुसार पुरुषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को  कर्क लग्न में माता कौशल्या जी की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।श्री रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था इस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरण रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है।
इस त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभयता में महत्वपूर्ण रहा है। इसके साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी जुड़ा है। इस तथ्य से पता लगता है कि भगवान श्री राम जी ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध में उन्हें विजय प्राप्त हुयी थी। दो महत्वपूर्ण त्यौहारों का एक साथ होना पर त्योहार की महत्वता को भी अधिक बढ़ा देता है।
आइए भगवान का नाम लेकर रामनवमी की कथा का विस्तार से वर्णन करता हू जब भगवान श्री राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढिया के घर गये। बुढिया सूत कात रही थी। उसने उनकी आवभगत की। स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करया। राम जी ने कहा- माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो भोजन करूगां। उस बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गुजारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गयी। अत: दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गयी। अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढिया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर उसे को मोती दिला दिये। वह मोती लेकर घर आयी, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम, सीता और लक्ष्मण जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर उस बुढि़या को कुछ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पड़ोस के लोग मोती चुनकर ले जाने लगे।
एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह क़िले की ओर ले चली। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से ख़राब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और ख़ूब मोती बांटती।
श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृद्धि होती है

शहीद भगत सिह को नमन

   
  मैं अनिल पाराशर आप सभी को राम राम करता हूँ जिसके बहुत सारे लेख लिखे मगर आज भारत माँ सच्चे सपूतों मे से एक शहीद भगत सिंह  के विषय मे अखबारो व इंटरनेट पर पढ़ा तो दिल भर आया और मिला जुला एक लेख लिखा । हमारे देश की सरकारें व राजनेता कब के भुला देते मगर हमारे कवियों श्री जगबीर राठी (हरियाणवी) डा. कुमार विश्वास ,श्री सुरेंद्र शर्मा जी व लगभग तमाम कवियों ने अपनी कविताओं के ज़रिए हमारे दिलो आज भी जीवित रखा है आज इन कवियों की देशभक्ति को मेरा नमन ।आइए प्रारम्भ करता हूँ
 
सबसे भावपूर्ण सच्ची श्रद्धाजलि देश के सभी सपूतों को जिन्होंने देश की ख़ातिर अपनी जान की बाज़ी लगा दी दोस्तों शहीद भगत सिहं जी भले ही हमारे बीच नही पर उनकी सोच तो हमेशा हमारे बीच रहेगी बहुत ही खुशनसीब होगी वह कोख और गर्व से चौडा हो गया होगा उस बाप का सीना जिस दिन देश की आजदी के खातिर उसका लाल फांसी चढ़ गया था। हॉं आज उसी माँ-बाप के लाल शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस है।
 
शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में एक देश भक्त क्रान्तिकारी परिवार में हुआ था। सही कह गया कि शेर कर घर शेर ही जन्म लेता है। इनका परिवार सिंख पंथ के होने बाद भी आर्यसमाजी था और स्वामी दयानंद की शिक्षा इनके परिवाद में कूट-कूट कर भरी हुई थी।एक आर्यसमाजी परिवेश में बड़े होने के कारण भगत सिंह पर भी इसका प्रभाव पड़ा और वे भी जातिभेद से उपर उठ गए ।9वीं तक की पढ़ाई के बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी । और यह वही काला दिन था जब देश में जलियावाला हत्या कांड हुआ था। इस घटना सम्पूर्ण देश के साथ साथ इस 12 वर्षीय बालक के हृदय में अंग्रेजों के दिलों में नफरत कूट-कूट कर भर दी। जहॉं प्रारम्भ में भगत सिंह क्रान्तिकारी प्रभाव को ठीक नही मानते थे वही इस घटना ने उन्हे देश की आजादी के सेनानियों में अग्रिम पक्तिं में लाकर खड़ा कर रही है।
यही नही लाला लाजपत राय पर पड़ी एक एक लाठी, उस समय के युवा मन पर पडे हजार घावों से ज्यादा दर्द दे रहे थे। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सैंडर्स की हत्या के चक्रव्यूह की रचना की और भगत सिंह और राजगुरू के गोलियों के वार से वह सैंडर्स गॉड को प्यारा हो गया।
निश्चित रूप से भगत सिंह और उनके साथियों में जोश और जवानी चरम सीमा पर थी। राष्ट्रीय विधान सभा में बम फेकने के बाद चाहते तो भाग सकते थे किन्तु भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी की बेदी पर चढ़ना मंजूर किया और 23 मार्च 1931 हसते हुऐ गीत गाते हुये निकले और भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी पर चढ़ गये।
शहीद भगत सिंह और उनके मित्रों की शहादत की मिसाल दुनिया भर मे प्रसिद्ध है।दुनिया भर के संपादकों ने नामी अखबारो मे भगतसिंह की प्रशंसा की है तथा उनकी शहादत को सम्मान दिया है किन्तु आज भी यह यक्ष प्रश्न है कि अनेकों स्वतंत्रता संग्राह सेनानी आज इस सम्मान से वचिंत क्यो है पिछले कई साल से यह सम्मान को नही दिया गया था सरकार चाहती तो यह सम्मान सेनानियों को दिया जा सकता था।
 
इतना तो तय है कि कुछ दल बदलू स्वार्थी बड़बोले नेताओं और अंग्रेजो में कोई फर्क नही है।खैर यह तो विवाद का कारण हो सकता है किन्तु आज इस पावन अवसर पर शहीद भगत सिंह को सच्चे दिल से नमन करना और उनके आदर्शो से ही उनको असली भारत रन्त दिया जाना होगा।
शहीद भगतसिंह जी के साहस का परिचय इस गीत से मिलता है 
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।

आपके कीमती समय को लिए धन्यवाद व गुज़ारिश है कि देश के इन सच्चे सिपाहियों के बलिदान को हमेशा जीवित रखना जय राम जी की !

गौचरण भूमि की आवश्यकता


मैं अनिल पाराशर आपको हाथ जोड़कर राम राम करता हू तथा आपका ध्यान गौ माता व अन्य पशुओं के बचाव सरकार की तरफ़ ले जाना चाहता हू जैसा आपको पता भी है कि अभी हाल ही मे महाराष्ट्र की तर्ज पर हरियाणा में भी गौहत्या और गौतस्करी पर सजा का प्रावधान कर दिया गया है। ..एक स्वागत योग्य कदम। अब सरकार से प्रार्थना है की गौचरण भूमि खाली कराने का भी कानून पास करा दो। गायों की पहले से ही बहुत दुर्दशा है। 

अगर आप शहरों में जाके देखोगे तो इतनी बुरी हालत में मिलेंगी की आपकी अंतरात्मा काँप जायेगी। उनको सूखी घास भी नसीब नहीं हो रही है। प्लास्टिक, कूड़ा कचरा, अख़बार, लोहे के नट बोल्ट और पता नहीं क्या क्या खाकर ...गुजारा कर रही हैं। और उनके छोटे छोटे बाछड़े की तो पूछो ही मत। गऊशालाओं में भी इतनी जगह नहीं है की सबको रख सकें। शहर में सब अपनी पर्सनल लाइफ में बिजी रहते हैं। सबके किवाड़ बंद रहते हैं। हालांकि कभी कभी किसी खास मौके पे एक आध रोटी मिल जाती है।

मैं यहां शहरी लोगों को दोष नहीं दे रहा। आप किसी से भलाई की उम्मीद कर सकते हैं लेकिन उस पर दबाव नहीं डाल सकते। इससे उलट गावों में गायों की स्तिथि बहुत अच्छी है। कम से कम कोई भूखी प्यासी नहीं रहती, किसी को कचरा नहीं खाना पड़ता। खेतों में चर लेती हैं,, खेतों में मौका ना मिले तो और भी भतेरी घास फूस है। और दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि गाँव में लोग भी नरम दिल के हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से गौ तस्करी पे सख्ताई के चलते गावों में आवारा पशुओं की संख्या काफी बढ़ गयी है जिससे किसानों को खेती में नुकसान भी हुआ है। फिर ये सोचकर संतोष कर लेते हैं की चलो यार खा गई तो खा गई,गऊ माता है  साथ क्या ले के जाना है।कहने का मतलब ये है की शहरों में गायों की दशा बहोत खराब है और इसका एक ही समाधान है की गौचरण भूमि खाली कराओ।

संत गोपालदास देश भर मे अनशन कर कर के थक गया, अपने शरीर को हड्डियों का पिंजर बना लिया लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। उस टाइम तो बीजेपी वाले बड़ी बड़ी बातें करते थे अनशन को सपोर्ट भी किया लेकिन अब सब चुप हैं। बाकी सबको पता है कि अब हो क्या रहा है किसकी सरकार है।

 हाँ तो भाई गौचरण भूमि खाली करवाओ। सिर्फ गौतस्करी पे बैन लगाने से बात नहीं बनेगी।लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे नहीं लगता की ऐसा होगा। क्योंकि  भारत को विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं। अच्छी बात है। विकास के लिए जमीन चाहिए। अब गौचरण भूमि की बात तो छोडो खुद किसानों की जमीनें सुरक्षित नहीं हैं। तो मुझे नहीं लगता की किसी भी राजनितिक पार्टी की सरकार ऐसा करेगी। लेकिन याद रखना की उपरवाले ने धरती को हम सब के लिए बनाया था। प्रकृति से खिलवाड़ करोगे तो कहीं के नहीं रहोगे।


काफी समय से सुनते आ रहा हूँ की दुनिया अब खत्म होगी तब खत्म होगी। ये दुनिया तब खत्म होगी जब आदमी हर तरफ से स्वार्थी हो जायेगा। फिर राजनीति कर लेना ऐसे विकास को।सूर्यकवि पंडित लखमी चंद एक बात याद आ गयी-"इसा जमाना आवेगा माणस नै माणस खावेगा"

होली रंगो के इस त्योहार का महत्व ! Holi

आज कई सालों का बाद भारत मे वो भी अपने गृह प्रदेश हरियाणा मे हरियाणा की सुप्रसिद्ध कोरडामार /कोलडामार होली का मज़ा लिया !दिल मे आया की होली के इस त्योहार पर कुछ सामान्य परंतु ज़रूरी लिखा जाए,तो आइए प्रारंभ करता हूँ 

 
होली' हिन्दुओं का प्रसिद्द पर्व है। होली का त्योहार  रंगों का  त्योहार  है। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग फेंकते हैं और गुलाल लगाते हैं।यह प्रतिवर्ष फाल्गुन माह क़ी पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे रंगों के त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
 
होली इस त्योहार मे लकड़ी क़ी होलिका बनाकर जलाया जाता है तथा प्रातःकाल रंग-बिरंगे विभिन्न रंगों से एक दुसरे को रंग कर रंगों का त्यौहार मनाते हैं। सब एक दुसरे से गले लगकर उन्हें गुझिया खिलाते हैं

होली का महत्त्व - होली के साथ  एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है।  हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था। उनका पुत्र  प्रहलाद विष्णु भक्त निकला। बार बार रोकने पर भी प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता था जिससे हिरण्यकश्यम क्रोधित हुआ और कई तरह उनको सजा दी। लेकिन प्रह्लाद को भगवान की कृपया से कुछ भी तकलीफ नहीं हुई। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए अपनी बहन  होलिका को नियुक्त किया था ! क्योंकि होलिका के पास एक ऐसी चादर थी , जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था ! होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी ! वहाँ दैवीय चमत्कार हुआ ! चादर प्रह्लाद के ऊपर गिर पडी।   होलिका आग में जलकर भस्म हो गई , परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ ! भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय ! उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय घोषित कर दी ! तब से लेकर आज तक होलिका-दहन की स्मृति में होली का मस्त पर्व मनाया जाता है !
मनाने की विधि - होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है ! कुछ लोग रात्रि में लकड़ियाँ , झाड़-झंखाड़ एकत्र कर उसमे आग लगा देते हैं और समूह में होकर गीत गाते हैं ! आग जलाने की यह प्रथा होलिका-दहन की याद दिलाती है ! ये लोग रात में आतिशबाजी आदि चलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं !
    होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है ! होली वाले दिन लोग प्रातः काल से दोपहर 2बजे तक अपने हाथों में लाल , हरे , पीले रंगों का गुलाल हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं ! इस दिन किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता ! किसी अपरिचित को भी गुलाल मलकर अपने ह्रदय के नजदीक लाया जाता है !
हरियाणा मे तो यह कोरडामार बोली के नाम से प्रसिद्ध है ।होली मतलब फाग पर भाभी दुपट्टे को भिगोकर बट कर तैयार करती हैं कोरडा कहते हैं जितना कोरडा गीला उतनी ही भयंकर मार.

नृत्य-गान का वातावरण - होली वाले दिन गली -मुहल्लों में ढोल-मजीरे बजते सुनाई देते हैं ! इस दिन लोग लोग समूह-मंडलियों में मस्त होकर नाचते-गाते हैं ! दोपहर तक सर्वत्र मस्ती छाई रहती है ! कोई नीले-पीले वस्त्र लिए घूमता है , तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है ! बच्चे पानी के रंगों में एक-दुसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं ! गुब्बारों में रंगीन पानी भरकर लोगों पर गुब्बारें फेंकना भी बच्चों का प्रिय खेल हो जा रहा है ! बच्चे पिचकारियों से भी रंगों की वर्षा करते दिखाई देते हैं ! परिवारों में इस दिन लड़के-लडकियाँ , बच्चे-बूढ़े , तरुण-तरुनियाँ सभी मस्त होते हैं !अतः इससे मस्त उत्सव ढूँढना कठिन है और यह मेरा प्रिय त्योहार है ।

Indian Republic Day Special ..भारतीय गणतंत्र दिवस विशेष

मैं अनिल पाराशर आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ देता हूँ ! भारत की धरती से हज़ारों मील दूर विदेश मे रहकर भारतवर्ष से विशेष लगाव मेरी देशभक्ति मुझे लिखने विवश करती है कल बैठे बैठे इंटरनेट पर एक विडियो देखा कि आजकल बहुत से नौजवानों को गणतंत्र दिवस के बारे मे सही पता ही नही ।तभी ख़याल आया कि अपने देश के नौजवानों के लिए एक लेख लिखा जाए कि क्या महत्व है गणतंत्र दिवस का।
125करोड़ लोगो का प्यार उनकी देशभक्ति सिर्फ़ एक से ....... यही तो है मेरा भारत!
भारत की आजादी 15 अगस्त 1947 के बाद कई बार संशोधन करने के पश्चात भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया गया जो 3 वर्ष बाद यानी 26 नवंबर 1950 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। तब से 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस मनाते रहे हैं। इस बार हम 66वाँ गणतंत्र दिवस मनाएँगे।
गणतन्त्र (गण+तंत्र) का अर्थ है, जनता के द्वारा जनता के लिये शासन। इस व्यवस्था को हम सभी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। वैसे तो भारत में सभी हम पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं, परन्तु गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं। इस पर्व का महत्व इसलिये भी बढ जाता है क्योंकि इसे सभी वर्ग के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं।
गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी को ही क्यों मनाते हैं?
मित्रों, 26 जनवरी, 1950 भारतीय इतिहास में इसलिये भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि भारत का संविधान, इसी दिन अस्तित्व मे आया और भारत वास्तव में एक संप्रभु देश बना। भारत का संविधान लिखित एवं सबसे बङा संविधान है। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में 2 वर्ष, 11 महिना, 18 दिन लगे थे। इस दिन भारत एक सम्पूर्ण गणतान्त्रिक देश बन गया।देश को गौरवशाली गणतन्त्र राष्ट्र बनाने में जिन देशभक्तो ने अपना बलिदान दिया उन्हे याद करके, भावांजली देने का पर्व है, 26 जनवरी तथा उन सभी देशभक्तों को श्रद्धा सुमन अपिर्त करते हुए, गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व भारतवर्ष के कोने-कोने में बड़े उत्साह तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रति वर्ष इस दिन प्रभात फेरियां निकाली जाती है। भारत की राजधानी दिल्ली समेत प्रत्येक राज्य तथा विदेशों के भारतीय राजदूतावासों में भी यह त्योहार गर्व से मनाया जाता है।
26 जनवरी का मुख्य समारोह भारत की राजधानी दिल्ली में भव्यता के साथ मनाते हैं। देश के विभिन्न भागों से असंख्य व्यक्ति इस समारोह की शोभा देखने के लिये आते हैं। हमारे सुरक्षा प्रहरी परेड निकाल कर, अपनी आधुनिक सैन्य क्षमता का प्रदर्शन करते हैं तथा इस बात का हमें विश्वास दिलाते हैं कि हम सुरक्षा में सक्षम हैं। परेड विजय चौक से प्रारम्भ होकर राजपथ एवं दिल्ली के अनेक क्षेत्रों से गुजरती हुयी लाल किले पर जाकर समाप्त हो जाती है। परेड शुरू होने से पहले प्रधानमंत्रीअमर जवान ज्योतिपर शहीदों को श्रंद्धांजलि अर्पित करते हैं। राष्ट्रपति अपने अंगरक्षकों के साथ 14 घोड़ों की बग्घी में बैठकर इंडिया गेट पर आते हैं, जहाँ प्रधानमंत्री उनका स्वागत करते हैं। राष्ट्रीय धुन के साथ ध्वजारोहण करते हैं, उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती है, हवाई जहाजों द्वारा पुष्पवर्षा की जाती है। आकाश में तिरंगे गुब्बारे और सफेद कबूतर छोड़े जाते हैं। जल, थल, वायु तीनों सेनाओं की टुकडि़यां, बैंडो की धुनों पर मार्च करती हैं। पुलिस के जवान, विभिन्न प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों, मिसाइलों, टैंको, वायुयानो आदि का प्रदर्शन करते हुए देश के राष्ट्रपति को सलामी देते हैं। सैनिकों का सीना तानकर अपनी साफ-सुथरी वेषभूषा में कदम से कदम मिलाकर चलने का दृष्य बड़ा मनोहारी होता है। यह भव्य दृष्य को देखकर मन में राष्ट्र के प्रति भक्ति तथा ह्रदय में उत्साह का संचार होता है। स्कूल, कॉलेज की छात्र-छात्राएं, एन.सी.सी. की वेशभूषा में सुसज्जित कदम से कदम मिलाकर चलते हुए यह विश्वास उत्पन्न करते हैं कि हमारी दूसरी सुरक्षा पंक्ति अपने कर्तव्य से भलीभांति परिचित हैं। मिलेट्री तथा स्कूलों के अनेक बैंड सारे वातावरण को देशभक्ति तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना से गुंजायमान करते हैं। विभिन्न राज्यों की झांकियां वहाँ के सांस्कृतिक जीवन, वेषभूषा, रीति-रिवाजों, औद्योगिक तथा सामाजिक क्षेत्र में आये परिवर्तनों का चित्र प्रस्तुत करती हैं। अनेकता में एकता का ये परिदृष्य अति प्रेरणादायी होता है। गणतन्त्र दिवस की संध्या पर राष्ट्रपति भवन, संसद भवन तथा अन्य सरकारी कार्यालयों पर रौशनी की जाती है।
26 जनवरी का पावन पर्व आज भी हर भारतीयों के दिल में चाहे हम देश मे हो या विदेश मे राष्ट्रीय भावना की मशाल को प्रज्वलित कर रहा है लहराता हुआ तिरंगा रोम-रोम में जोश का संचार कर रहा है, चहुँओर खुशियों की सौगात है। आओ हम सब मिलकर उन सभी अमर बलिदानियों को अपनी भावांजली से नमन करें, वंदन करें।
जय हिन्द, जय भारत
अनिल पाराशर 
 

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