अहोई अष्टमी की व्रत कथा व महत्व

राम राम जी .. 

काफ़ी दिनों बाद आज फिर कुछ लिखने का मन हुआ .. हुआ यू कि कल शाम को घर मे अहोई माता की कथा व व्रत के तैयारी चल रही थी अब बात आई यहाँ देश से हज़ारों मिल दूर व्रत कथा व अहोई माता की तस्वीर कैसे बनाए और जैसा आपको पता है कि अब चाहिए तो चाहिए वैसे भी तीज-त्यौहार मनाने मे कोई समझौता नही करते है बाकि घर घर की कहानी है .. 
वैसे तो आजकल इंटरनेट पर सब कुछ मिल जाता है मगर बात फिर वही की घरेलू तौर तरीक़े कैसे पता लगे . मुझे फिर एहसास हुआ कि मेरे जैसे न जाने कितने परिवार है जे देश-प्रदेश से दूर है व उनके मन मे भी यही उत्सुकता होती होगी को सोचा चलो अब फिर टिक टिक करके लिखा जाए ..

अकसर मेने बचपन मे घर पर व्रत विधि को देखा है तो मिली जुली जानकारी व इंटरनेट की मदद से लेख लिखा चलिए अब प्रारम्भ करते है महत्व ,विधि व कथा ...


अहोई अष्टमी व्रत का महत्व .. 


अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है यह व्रत विशेष तौर पर माताओं द्वारा अपनी संतान विशेषकर पुत्र सन्तान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है। जिन जातकों की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो, बार-बार बीमार पड़ते हों या किसी भी कारण माता-पिता को अपने संतान की ओर से स्वास्थ्य व आयु की दृष्टि से चिंता बनी रहती हो, इस पर्व पर संतान की माता द्वारा समुचित व्रत व पूजा आदि का विशेष लाभ प्राप्त होता है तथा संतान स्वस्थ होकर दीर्घायु को प्राप्त करती हैं। जिन दम्पत्तियों के पुत्र नहीं बल्कि पुत्री सन्तान है, वे भी अहोई माता की पूजा कर सकती हैं! सन्तान की कामना वाली महिलाएं भी यह व्रत रखकर अहोई माता से सन्तान प्राप्ति की प्रार्थना कर सकती हैं! लेकिन यह भी नियम है कि एक साल व्रत लेने के बाद आजीवन यह व्रत टूटना नहीं चाहिए! कुछ लोगों की धारणा है कि सिर्फ सपूतों के लिए ही व्रत रखा जाता है। मगर ऐसा नहीं है। आज के बदलते दौर में पुत्री भी माता पिता के लिए बराबर की मान्यता साकार करती हैं तो पुत्रियों के सुख सौभाग्य के लिए भी अहोई माता कृपालु होती हैं।


अहोई अष्टमी पूजा विधि ..
अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं तथा साथ ही सेह और उसके बच्चों का चित्र भी बनाते हैं। सन्ध्या समय लगभग आरती के समय के उपरान्त मां का पूजन करने के बाद अहोई माता की कथा सुनते हैं। पूजा के बाद सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर बाहर आकाश में दीपक अर्पित करके तारों की पूजा कर जल चढ़ाते हैं। इस दौरान ओम जय अहोई माता का जाप भी करते हैं। अष्टमी का चांद देखने के उपरान्त व्रत पूजन पूरा हो जाता है और इसके पश्चात व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करना होता है। पूजा के उपरान्त इस दिन लाल धागे की रक्षा बांधकर पुत्र अथवा पुत्री को दीर्घायु का आशीर्वाद देना चाहिए! 

अहोई अष्टमी की व्रत कथा 
प्राचीन काल में एक साहूकार रहा करता था। साहूकार की पत्नी चंद्रिका बहुत गुणवती थी। साहूकार की  बहुत संताने थीं। वह अपने परिवार के साथ सुख से जीवन यापन कर रहा होता है। एक बार साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में जाती है और कुदाल से मिट्टी खोदने लगती है, परंतु उसी जगह एक सेह की मांद होती है और अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग जाती है जिससे सेह के बच्चे की मृत्यु हो जाती है।

इस घटना से साहूकार की पत्नी को बहुत दुख होता है। मन में पश्चाताप का भाव लिए वह घर लौट जाती है। परंतु कुछ दिनों बाद उसकी संतानें एक-एक करके मरने लगती हैं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति पत्नी दुखी रहने लगते हैं। बच्चों की शोक सभा में साहूकार की पत्नी विलाप करती हुई उन्हें बताती है कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नहीं किया लेकिन एक बार अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी।

यह सुनकर औरतें साहूकार की पत्नी को दिलासा देती हैं और उसे अष्टमी माता की पूजा करने को कहती हैं। साहूकार की पत्नी दीवार पर अहोई माता और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर माता की पूजा करती है और अहोई मां से अपने अपराध की क्षमा-याचना करती है। तब मां प्रसन्न हो उसकी होने वाली संतानों को दीर्घ आयु का वरदान देती हैं। तभी से अहोई व्रत की परंपरा प्रचलित हो गई।

अहोई माता की कृपा पर एक कथा और भी है... एक दन्तकथा के अनुसार, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती हैं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं।

छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार! तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है। अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई माता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको  मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निश्कंटक जीवन का सुख मिलता है!
जय राम जी की ..

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