राम राम जी ! मैं अनिल पाराशर Anil Parashar बैसाखी के त्यौहार पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ देता हू !
बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार है।उतरी भारत मे यह त्यौहार बैसाखी (मेक) नाम से पंजाब व हरियाणा में मनाया जाता है जिसे देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले सभी धर्मपंथ के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बैसाखी पर्व हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है।अब आप सोच रहे होगे कि अबकी बार 14 अप्रैल को क्यूँ ? वैसे कभी-कभी 12-13 वर्ष में यह त्योहार 14 तारीख को भी आ जाता है। रंग-रंगीला और छबीला पर्व बैसाखी अप्रैल माह के 13 या 14 तारीख को जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब मनाया जाता है। भारत भर में बैसाखी का पर्व सभी जगह मनाया जाता है। इसे दूसरे नाम से खेती का पर्व भी कहा जाता है। कृषक इसे बड़े आनंद और उत्साह के साथ मनाते हुए खुशियों का इजहार करते हैं। बैसाखी मुख्यतः कृषि पर्व है। पंजाब व हरियाणा की भूमि से जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है तब यह पर्व मनाया जाता है। इस कृषि पर्व की आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी काफी मान्यता है।हरियाणा मे मैंने इस कहावत को किसानो से अकसर सुना है "मेक पाछै फ़सल एकम एक "इंटरनेट व कुछ मित्रों से मिली जानकारी के अनुसार देश भर मे अलग अलग नाम से मनाया जाता है मेरी जानकारी के अनुसार बैसाखी किसी धर्म विशेष का नही बल्कि हर किसी का त्यौहार है केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के अन्य प्रांतों में भी बैसाखी पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन मेले लगते हैं। लोग श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं तथा उत्तर-पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी इस दिन बिहू का पर्व मनाया जाता ह उत्तर भारत में विशेष कर पंजाब व हरियाणा मे बैसाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक-युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। यह बात सत्य है कि सिखों का इस त्यौहार से विशेष संबंध है अतः बैसाखी आकर पंजाब के युवावर्ग को याद दिलाती है। साथ ही वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहां माता अपने दस गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी।
सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी। इसका 'खालसा' खालिस शब्द से बना है। जिसका अर्थ- शुद्ध, पावन या पवित्र होता है। खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोबिन्द सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था।
हिंदुओं के लिए यह त्योहार नववर्ष की शुरुआत है। हिंदु इसे स्नान, भोग लगाकर और पूजा करके मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हजारों साल पहले देवी गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थीं। उन्हीं के सम्मान में हिंदू धर्मावलंबी पारंपरिक पवित्र स्नान के लिए गंगा किनारे एकत्र होते हैं।
केरल में यह त्योहार 'विशु' कहलाता है। इस दिन नए, कपड़े खरीदे जाते हैं, आतिशबाजी होती है और 'विशु कानी' सजाई जाती है। इसमें फूल, फल, अनाज, वस्त्र, सोना आदि सजाए जाते हैं और सुबह जल्दी इसके दर्शन किए जाते हैं। इस दर्शन के साथ नए वर्ष में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। ब्न्गाल मे इन ये त्योहार नभ बर्श के नम से मनाते हैं।
मैं अनिल पाराशर आपका धन्यवाद करता हू आपके क़ीमती समय के लिए व अपील करता हू संभव हो सके जितना त्यौहार बनाइये उतना व्यवहार बनाने के लिए ! मेरे इस लेख मे कुछ अधूरी जानकारी या कोई सुझाव हो तो कृपया मुझे लिखे मैं सम्मिलित करने की कोशिश करूँगा।जय राम जी की !
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