राम राम जी , मैं अनिल पाराशर फिर से एक नये व्यवहारिक दिनचारित बातो पर एक आलेख के साथ जानकारी सीमित थी मगर मिला जुलाकर जुटाने की कोशिश कि है कुछ अधूरा व ग़लत लगे तो अवश्य कमेंट मे लिखे मै इसे सँवारने की कोशिश करूँगा अकसर हम लोग आपस मे कहते व सुनते है “सरदार जी के बारह बज गए” ज्यादातर लोगों को लगता है की सरदार के ठंडे भाव-भंगिमाओं के कारण ही इस फ्रेज का लोग इस्तेमाल करते हैं । आज मैं अनिल पाराशर आपको बताने की कोशिश करूँगा हैं कि कहावत के पीछे की हकीकत क्या है
सतरहवी शताब्दी में जब देश में मुगलों का अत्याचार चरम पर था,बहुसंख्यक हिन्दुओं को धर्म-परिवर्तन के लिए अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं,औरंगजेब के काल में ये स्थिति और बदतर हो गयी । मुग़ल सैनिक,धर्मान्तरण के लिए हिन्दू महिलाओं की आबरू को निशाना बनाते थे ।अंततः दुर्दांत क़त्ल-ए-आम और बलात्कार से परेशान हो कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर में सिखों के नवमे गुरु तेग बहादुर से मदद की गुहार लगाई.
गुरु तेग बहादुर ने बादशाह ‘औरंगजेब’ के दरबार में अपने आपको प्रस्तुत किया और चुनौती दी कि यदि मुग़ल सैनिक उन्हें स्वयं इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहे तो अन्य हिन्दू सहर्ष ही इस्लाम अपना लेंगे । जैसा आपको पता भी होगा कि औरंगजेब बेहद क्रूर था,मगर अपनी कौल का पक्का व्यक्ति था,गुरु जी उसके स्वभाव से परिचित थे । गुरूजी के प्रस्ताव पर उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी । गुरु तेग बहादुर और उनके कई शिष्य मरते दम तक अत्याचार सहते हुए शहीद हो गए,पर इस्लाम स्वीकार नहीं किया । इस तरह अपने प्राणों की बलि देकर उन्होंने बांकी हिन्दुओं के हिंदुत्व को बचा लिया और इसी कारण उन्हें “हिन्द की चादर” से भी जाना जाता है
उनके बाद,सुयोग्य बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए आर्मी का निर्माण किया,जो कालांतर में ‘सिख’ के नाम से जाने गए ।
एक बार आक्रमणकारियों ने हज़ारों भारतीय महिलाओं बंधक बना लिया.तब सरदार जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे,जस्सा सिहं ने इन लुटेरों पर हमला करने की योजना बनायी । परन्तु उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी इसलिए उन्होंने आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया ।महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने,कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया । सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया.
यही योजना बाद मे भी जारी रही । अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में,सभी समुदाय की औरतों को बेंचना शुरू कर दिया.तब एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए बहुत सारी महिलाओं को बचा लिया ।सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की ।
रात 12 बजे के समय में हमला करते समय लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए”
सरदार सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा । गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है
सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोविंद सिंह कहलाऊं
दोस्तों ऐसी वीरता,साहस और ईमानदारी के पर्याय सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है । बार बार दोहराना अनजाने में ही सही पर किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
अंत मे यही कहूँगा
सभी धर्म समुदाय का सम्मान करो
बिना जाने ना किसी का उपहास करो
मिलजुल कर बेहतर ज़िंदगी का प्रयास करो ।
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