मैं अनिल पाराशर आप सभी को राम राम करता हूँ जिसके बहुत सारे लेख लिखे मगर आज भारत माँ सच्चे सपूतों मे से एक शहीद भगत सिंह के विषय मे अखबारो व इंटरनेट पर पढ़ा तो दिल भर आया और मिला जुला एक लेख लिखा । हमारे देश की सरकारें व राजनेता कब के भुला देते मगर हमारे कवियों श्री जगबीर राठी (हरियाणवी) डा. कुमार विश्वास ,श्री सुरेंद्र शर्मा जी व लगभग तमाम कवियों ने अपनी कविताओं के ज़रिए हमारे दिलो आज भी जीवित रखा है आज इन कवियों की देशभक्ति को मेरा नमन ।आइए प्रारम्भ करता हूँ
सबसे भावपूर्ण सच्ची श्रद्धाजलि देश के सभी सपूतों को जिन्होंने देश की ख़ातिर अपनी जान की बाज़ी लगा दी दोस्तों शहीद भगत सिहं जी भले ही हमारे बीच नही पर उनकी सोच तो हमेशा हमारे बीच रहेगी बहुत ही खुशनसीब होगी वह कोख और गर्व से चौडा हो गया होगा उस बाप का सीना जिस दिन देश की आजदी के खातिर उसका लाल फांसी चढ़ गया था। हॉं आज उसी माँ-बाप के लाल शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस है।
शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में एक देश भक्त क्रान्तिकारी परिवार में हुआ था। सही कह गया कि शेर कर घर शेर ही जन्म लेता है। इनका परिवार सिंख पंथ के होने बाद भी आर्यसमाजी था और स्वामी दयानंद की शिक्षा इनके परिवाद में कूट-कूट कर भरी हुई थी।एक आर्यसमाजी परिवेश में बड़े होने के कारण भगत सिंह पर भी इसका प्रभाव पड़ा और वे भी जातिभेद से उपर उठ गए ।9वीं तक की पढ़ाई के बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी । और यह वही काला दिन था जब देश में जलियावाला हत्या कांड हुआ था। इस घटना सम्पूर्ण देश के साथ साथ इस 12 वर्षीय बालक के हृदय में अंग्रेजों के दिलों में नफरत कूट-कूट कर भर दी। जहॉं प्रारम्भ में भगत सिंह क्रान्तिकारी प्रभाव को ठीक नही मानते थे वही इस घटना ने उन्हे देश की आजादी के सेनानियों में अग्रिम पक्तिं में लाकर खड़ा कर रही है।
यही नही लाला लाजपत राय पर पड़ी एक एक लाठी, उस समय के युवा मन पर पडे हजार घावों से ज्यादा दर्द दे रहे थे। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सैंडर्स की हत्या के चक्रव्यूह की रचना की और भगत सिंह और राजगुरू के गोलियों के वार से वह सैंडर्स गॉड को प्यारा हो गया।
निश्चित रूप से भगत सिंह और उनके साथियों में जोश और जवानी चरम सीमा पर थी। राष्ट्रीय विधान सभा में बम फेकने के बाद चाहते तो भाग सकते थे किन्तु भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी की बेदी पर चढ़ना मंजूर किया और 23 मार्च 1931 हसते हुऐ गीत गाते हुये निकले और भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी पर चढ़ गये।
शहीद भगत सिंह और उनके मित्रों की शहादत की मिसाल दुनिया भर मे प्रसिद्ध है।दुनिया भर के संपादकों ने नामी अखबारो मे भगतसिंह की प्रशंसा की है तथा उनकी शहादत को सम्मान दिया है किन्तु आज भी यह यक्ष प्रश्न है कि अनेकों स्वतंत्रता संग्राह सेनानी आज इस सम्मान से वचिंत क्यो है पिछले कई साल से यह सम्मान को नही दिया गया था सरकार चाहती तो यह सम्मान सेनानियों को दिया जा सकता था।
इतना तो तय है कि कुछ दल बदलू स्वार्थी बड़बोले नेताओं और अंग्रेजो में कोई फर्क नही है।खैर यह तो विवाद का कारण हो सकता है किन्तु आज इस पावन अवसर पर शहीद भगत सिंह को सच्चे दिल से नमन करना और उनके आदर्शो से ही उनको असली भारत रन्त दिया जाना होगा।
शहीद भगतसिंह जी के साहस का परिचय इस गीत से मिलता है
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।
आपके कीमती समय को लिए धन्यवाद व गुज़ारिश है कि देश के इन सच्चे सिपाहियों के बलिदान को हमेशा जीवित रखना जय राम जी की !
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