राम नवमी के पवित्र त्योहार की कथा व महत्व


मैं अनिल पाराशर आप सभी को रामनवमी के इस पवित्र त्योहार पर हाथ जोड़कर राम राम करता हूँ जिसके बहुत सारे लेख लिखेमगर आज भारत भगवान राम के विषय मे अपने परिवारजनों तथा अखबारो व इंटरनेट पर पढ़ने से मिली मेरी जानकारी पर दिल मे ख़याल आया एक छोटा सा मिला जुला एक लेख लिखने का,उम्मीद है आप को पसंद अायेगा। श्री रामनवमी, भगवान श्री राम को समर्पित पर्व है | श्रीरामचन्द्र जी के जन्म के कारण चैत्रशुक्लपक्ष नवमी श्री रामनवमी कहलाती है वेदों के अनुसार पुरुषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को  कर्क लग्न में माता कौशल्या जी की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।श्री रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था इस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरण रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है।
इस त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभयता में महत्वपूर्ण रहा है। इसके साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी जुड़ा है। इस तथ्य से पता लगता है कि भगवान श्री राम जी ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध में उन्हें विजय प्राप्त हुयी थी। दो महत्वपूर्ण त्यौहारों का एक साथ होना पर त्योहार की महत्वता को भी अधिक बढ़ा देता है।
आइए भगवान का नाम लेकर रामनवमी की कथा का विस्तार से वर्णन करता हू जब भगवान श्री राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढिया के घर गये। बुढिया सूत कात रही थी। उसने उनकी आवभगत की। स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करया। राम जी ने कहा- माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो भोजन करूगां। उस बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गुजारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गयी। अत: दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गयी। अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढिया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर उसे को मोती दिला दिये। वह मोती लेकर घर आयी, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम, सीता और लक्ष्मण जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर उस बुढि़या को कुछ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पड़ोस के लोग मोती चुनकर ले जाने लगे।
एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह क़िले की ओर ले चली। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से ख़राब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और ख़ूब मोती बांटती।
श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृद्धि होती है

शहीद भगत सिह को नमन

   
  मैं अनिल पाराशर आप सभी को राम राम करता हूँ जिसके बहुत सारे लेख लिखे मगर आज भारत माँ सच्चे सपूतों मे से एक शहीद भगत सिंह  के विषय मे अखबारो व इंटरनेट पर पढ़ा तो दिल भर आया और मिला जुला एक लेख लिखा । हमारे देश की सरकारें व राजनेता कब के भुला देते मगर हमारे कवियों श्री जगबीर राठी (हरियाणवी) डा. कुमार विश्वास ,श्री सुरेंद्र शर्मा जी व लगभग तमाम कवियों ने अपनी कविताओं के ज़रिए हमारे दिलो आज भी जीवित रखा है आज इन कवियों की देशभक्ति को मेरा नमन ।आइए प्रारम्भ करता हूँ
 
सबसे भावपूर्ण सच्ची श्रद्धाजलि देश के सभी सपूतों को जिन्होंने देश की ख़ातिर अपनी जान की बाज़ी लगा दी दोस्तों शहीद भगत सिहं जी भले ही हमारे बीच नही पर उनकी सोच तो हमेशा हमारे बीच रहेगी बहुत ही खुशनसीब होगी वह कोख और गर्व से चौडा हो गया होगा उस बाप का सीना जिस दिन देश की आजदी के खातिर उसका लाल फांसी चढ़ गया था। हॉं आज उसी माँ-बाप के लाल शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस है।
 
शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में एक देश भक्त क्रान्तिकारी परिवार में हुआ था। सही कह गया कि शेर कर घर शेर ही जन्म लेता है। इनका परिवार सिंख पंथ के होने बाद भी आर्यसमाजी था और स्वामी दयानंद की शिक्षा इनके परिवाद में कूट-कूट कर भरी हुई थी।एक आर्यसमाजी परिवेश में बड़े होने के कारण भगत सिंह पर भी इसका प्रभाव पड़ा और वे भी जातिभेद से उपर उठ गए ।9वीं तक की पढ़ाई के बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी । और यह वही काला दिन था जब देश में जलियावाला हत्या कांड हुआ था। इस घटना सम्पूर्ण देश के साथ साथ इस 12 वर्षीय बालक के हृदय में अंग्रेजों के दिलों में नफरत कूट-कूट कर भर दी। जहॉं प्रारम्भ में भगत सिंह क्रान्तिकारी प्रभाव को ठीक नही मानते थे वही इस घटना ने उन्हे देश की आजादी के सेनानियों में अग्रिम पक्तिं में लाकर खड़ा कर रही है।
यही नही लाला लाजपत राय पर पड़ी एक एक लाठी, उस समय के युवा मन पर पडे हजार घावों से ज्यादा दर्द दे रहे थे। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सैंडर्स की हत्या के चक्रव्यूह की रचना की और भगत सिंह और राजगुरू के गोलियों के वार से वह सैंडर्स गॉड को प्यारा हो गया।
निश्चित रूप से भगत सिंह और उनके साथियों में जोश और जवानी चरम सीमा पर थी। राष्ट्रीय विधान सभा में बम फेकने के बाद चाहते तो भाग सकते थे किन्तु भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी की बेदी पर चढ़ना मंजूर किया और 23 मार्च 1931 हसते हुऐ गीत गाते हुये निकले और भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी पर चढ़ गये।
शहीद भगत सिंह और उनके मित्रों की शहादत की मिसाल दुनिया भर मे प्रसिद्ध है।दुनिया भर के संपादकों ने नामी अखबारो मे भगतसिंह की प्रशंसा की है तथा उनकी शहादत को सम्मान दिया है किन्तु आज भी यह यक्ष प्रश्न है कि अनेकों स्वतंत्रता संग्राह सेनानी आज इस सम्मान से वचिंत क्यो है पिछले कई साल से यह सम्मान को नही दिया गया था सरकार चाहती तो यह सम्मान सेनानियों को दिया जा सकता था।
 
इतना तो तय है कि कुछ दल बदलू स्वार्थी बड़बोले नेताओं और अंग्रेजो में कोई फर्क नही है।खैर यह तो विवाद का कारण हो सकता है किन्तु आज इस पावन अवसर पर शहीद भगत सिंह को सच्चे दिल से नमन करना और उनके आदर्शो से ही उनको असली भारत रन्त दिया जाना होगा।
शहीद भगतसिंह जी के साहस का परिचय इस गीत से मिलता है 
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।

आपके कीमती समय को लिए धन्यवाद व गुज़ारिश है कि देश के इन सच्चे सिपाहियों के बलिदान को हमेशा जीवित रखना जय राम जी की !

गौचरण भूमि की आवश्यकता


मैं अनिल पाराशर आपको हाथ जोड़कर राम राम करता हू तथा आपका ध्यान गौ माता व अन्य पशुओं के बचाव सरकार की तरफ़ ले जाना चाहता हू जैसा आपको पता भी है कि अभी हाल ही मे महाराष्ट्र की तर्ज पर हरियाणा में भी गौहत्या और गौतस्करी पर सजा का प्रावधान कर दिया गया है। ..एक स्वागत योग्य कदम। अब सरकार से प्रार्थना है की गौचरण भूमि खाली कराने का भी कानून पास करा दो। गायों की पहले से ही बहुत दुर्दशा है। 

अगर आप शहरों में जाके देखोगे तो इतनी बुरी हालत में मिलेंगी की आपकी अंतरात्मा काँप जायेगी। उनको सूखी घास भी नसीब नहीं हो रही है। प्लास्टिक, कूड़ा कचरा, अख़बार, लोहे के नट बोल्ट और पता नहीं क्या क्या खाकर ...गुजारा कर रही हैं। और उनके छोटे छोटे बाछड़े की तो पूछो ही मत। गऊशालाओं में भी इतनी जगह नहीं है की सबको रख सकें। शहर में सब अपनी पर्सनल लाइफ में बिजी रहते हैं। सबके किवाड़ बंद रहते हैं। हालांकि कभी कभी किसी खास मौके पे एक आध रोटी मिल जाती है।

मैं यहां शहरी लोगों को दोष नहीं दे रहा। आप किसी से भलाई की उम्मीद कर सकते हैं लेकिन उस पर दबाव नहीं डाल सकते। इससे उलट गावों में गायों की स्तिथि बहुत अच्छी है। कम से कम कोई भूखी प्यासी नहीं रहती, किसी को कचरा नहीं खाना पड़ता। खेतों में चर लेती हैं,, खेतों में मौका ना मिले तो और भी भतेरी घास फूस है। और दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि गाँव में लोग भी नरम दिल के हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से गौ तस्करी पे सख्ताई के चलते गावों में आवारा पशुओं की संख्या काफी बढ़ गयी है जिससे किसानों को खेती में नुकसान भी हुआ है। फिर ये सोचकर संतोष कर लेते हैं की चलो यार खा गई तो खा गई,गऊ माता है  साथ क्या ले के जाना है।कहने का मतलब ये है की शहरों में गायों की दशा बहोत खराब है और इसका एक ही समाधान है की गौचरण भूमि खाली कराओ।

संत गोपालदास देश भर मे अनशन कर कर के थक गया, अपने शरीर को हड्डियों का पिंजर बना लिया लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। उस टाइम तो बीजेपी वाले बड़ी बड़ी बातें करते थे अनशन को सपोर्ट भी किया लेकिन अब सब चुप हैं। बाकी सबको पता है कि अब हो क्या रहा है किसकी सरकार है।

 हाँ तो भाई गौचरण भूमि खाली करवाओ। सिर्फ गौतस्करी पे बैन लगाने से बात नहीं बनेगी।लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे नहीं लगता की ऐसा होगा। क्योंकि  भारत को विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं। अच्छी बात है। विकास के लिए जमीन चाहिए। अब गौचरण भूमि की बात तो छोडो खुद किसानों की जमीनें सुरक्षित नहीं हैं। तो मुझे नहीं लगता की किसी भी राजनितिक पार्टी की सरकार ऐसा करेगी। लेकिन याद रखना की उपरवाले ने धरती को हम सब के लिए बनाया था। प्रकृति से खिलवाड़ करोगे तो कहीं के नहीं रहोगे।


काफी समय से सुनते आ रहा हूँ की दुनिया अब खत्म होगी तब खत्म होगी। ये दुनिया तब खत्म होगी जब आदमी हर तरफ से स्वार्थी हो जायेगा। फिर राजनीति कर लेना ऐसे विकास को।सूर्यकवि पंडित लखमी चंद एक बात याद आ गयी-"इसा जमाना आवेगा माणस नै माणस खावेगा"

होली रंगो के इस त्योहार का महत्व ! Holi

आज कई सालों का बाद भारत मे वो भी अपने गृह प्रदेश हरियाणा मे हरियाणा की सुप्रसिद्ध कोरडामार /कोलडामार होली का मज़ा लिया !दिल मे आया की होली के इस त्योहार पर कुछ सामान्य परंतु ज़रूरी लिखा जाए,तो आइए प्रारंभ करता हूँ 

 
होली' हिन्दुओं का प्रसिद्द पर्व है। होली का त्योहार  रंगों का  त्योहार  है। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग फेंकते हैं और गुलाल लगाते हैं।यह प्रतिवर्ष फाल्गुन माह क़ी पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे रंगों के त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
 
होली इस त्योहार मे लकड़ी क़ी होलिका बनाकर जलाया जाता है तथा प्रातःकाल रंग-बिरंगे विभिन्न रंगों से एक दुसरे को रंग कर रंगों का त्यौहार मनाते हैं। सब एक दुसरे से गले लगकर उन्हें गुझिया खिलाते हैं

होली का महत्त्व - होली के साथ  एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है।  हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था। उनका पुत्र  प्रहलाद विष्णु भक्त निकला। बार बार रोकने पर भी प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता था जिससे हिरण्यकश्यम क्रोधित हुआ और कई तरह उनको सजा दी। लेकिन प्रह्लाद को भगवान की कृपया से कुछ भी तकलीफ नहीं हुई। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए अपनी बहन  होलिका को नियुक्त किया था ! क्योंकि होलिका के पास एक ऐसी चादर थी , जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था ! होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी ! वहाँ दैवीय चमत्कार हुआ ! चादर प्रह्लाद के ऊपर गिर पडी।   होलिका आग में जलकर भस्म हो गई , परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ ! भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय ! उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय घोषित कर दी ! तब से लेकर आज तक होलिका-दहन की स्मृति में होली का मस्त पर्व मनाया जाता है !
मनाने की विधि - होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है ! कुछ लोग रात्रि में लकड़ियाँ , झाड़-झंखाड़ एकत्र कर उसमे आग लगा देते हैं और समूह में होकर गीत गाते हैं ! आग जलाने की यह प्रथा होलिका-दहन की याद दिलाती है ! ये लोग रात में आतिशबाजी आदि चलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं !
    होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है ! होली वाले दिन लोग प्रातः काल से दोपहर 2बजे तक अपने हाथों में लाल , हरे , पीले रंगों का गुलाल हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं ! इस दिन किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता ! किसी अपरिचित को भी गुलाल मलकर अपने ह्रदय के नजदीक लाया जाता है !
हरियाणा मे तो यह कोरडामार बोली के नाम से प्रसिद्ध है ।होली मतलब फाग पर भाभी दुपट्टे को भिगोकर बट कर तैयार करती हैं कोरडा कहते हैं जितना कोरडा गीला उतनी ही भयंकर मार.

नृत्य-गान का वातावरण - होली वाले दिन गली -मुहल्लों में ढोल-मजीरे बजते सुनाई देते हैं ! इस दिन लोग लोग समूह-मंडलियों में मस्त होकर नाचते-गाते हैं ! दोपहर तक सर्वत्र मस्ती छाई रहती है ! कोई नीले-पीले वस्त्र लिए घूमता है , तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है ! बच्चे पानी के रंगों में एक-दुसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं ! गुब्बारों में रंगीन पानी भरकर लोगों पर गुब्बारें फेंकना भी बच्चों का प्रिय खेल हो जा रहा है ! बच्चे पिचकारियों से भी रंगों की वर्षा करते दिखाई देते हैं ! परिवारों में इस दिन लड़के-लडकियाँ , बच्चे-बूढ़े , तरुण-तरुनियाँ सभी मस्त होते हैं !अतः इससे मस्त उत्सव ढूँढना कठिन है और यह मेरा प्रिय त्योहार है ।

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