राम राम जी , आज बहुत लम्बे समय के बाद कुछ लिखने का मन हुआ सोच ही रहा था की क्या लिखू बस फिर अच्छे दिनों को याद करते हुए कुछ मन में घुमने लगा सोचते -सोचते शब्द आने लगे और रचना जुड़ने लगी उन्ही शब्दों से बनी अच्छे दिन एक जुमला पर एक छोटी सी मेरी रचना ..
ले सपना अच्छे दिन का ले
आये जुमला सरकार
घनदोहन किया पर ना घटी
महँगाई की मार
माँग 50 दिन बदले मे वो उड़े गये देश से बाहर
देशहित समझ सह लिये सबने
करके उधार।।
घंटों लगा लाईन मे मिलते
थे कुछ हज़ार
कर ज़बरदस्ती फिर करवाये
लिंक आधार ।।
मरती सहती जनता कर दी
एकदम लाचार
कर भगौडे तल पकौडे बढ़ा
दी मंदी की मार
झूठ फैलाये गोदी मीडिया
का काला कारोबार
डरा धमका से भी ना माने
जो दिया ग़द्दार क़रार
हुये पेपर लीक गई रात-दिन
की मेहनत सारी बेकार
पढ़ लिख कर भी फिरता देश
की हर युवा बेरोज़गार
होते सैनिक शहीद फिर भी
पी चाय जाकर सीमापार
बिलखती माँ बहन व विधवा
कि कब निंदा सरकार
रोज़ बढ़े पेट्रोल-डीज़ल
दोहरी होती महँगाई की मार
ग़लत नितिया निरंकुशता से
डूब रहा आर्थिक बाज़ार
गिरे रूपया आये दिन
पहुँचा डालर सारे रिकार्ड के पार
लगे समझने लोग सब जुमलों
थे ..किया समय बेकार
लिखते लिखते मेरी कोशिश रही की बिना किसी राजनीती आवेश से लिखू और वही लिखा जो सामान्य आदमी ने अनुभव किया आपके विचार अलग हो सकते है आप भी लिखिए सटीक लिखिए