एक कटोरी दही...

मेरे एक पड़ोसी लगभग चालीस की उम्र के थे तब उनकी घर्मपत्नी का स्वर्गवास हो गया था। रिश्तेदारों व अन्य लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि मेरे बेटे के रूप में मेरी पत्नी की दी हुई बेहद ख़ास निशानी  मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।

समय बीता लड़का जब बडा हुआ तो पूरा कारोबार व लेन देन छोरे के हवाले कर दिया। फिर साथ मिलकर आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे।

छोरे की शादी कर दी और निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सौंप दिया।

छोरे की शादी के लगभग डेढ वर्ष बाद दोहपर में खाना खाने के लिए घर पर थे,  तभी पुत्र भी ऑफिस से आ गया था और खाना खाने के लिए हाथ मुँह धो रहा था 

उसने सुना कि पापा जी ने एक कटोरी दही माँगी और बहू ने जवाब दिया कि आज दही नहीं है। पापा खाना खाकर दोस्तों के पास बाहर चले गये।

थोडी देर बाद छोरा अपनी बहु के साथ खाना खाने बैठा। कटोरा भरा हुआ था दही की खाने में । छोरा चुपचाप रहकर अपना खाना खाकर ऑफिस चला गया।

पर मन कहीं ओर था किसी उधेड़ मे बस अगले हफ़्ते ही पापा से कहा- ‘‘पापा आज आपका दूसरा ब्याह करवाऊँगा ’’

अचानक ये ऐसी बात सुनकर पापा ने कहा -‘‘बेटा अब मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और शायद तुझे भी दूसरी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा ब्याह ?’’

बेटे ने कहा ‘‘ पापा,मै अपने लिए माँ नही ला रहा हूँ बलकि मैं तो केवल आपके लिये एक कटोरी दही का इन्तजाम कर रहा हूँ।

कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा आपके ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चलेगी ! 

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