प्रिय :-
सबसे पहले आपको राम राम जी अनिल पाराशर की तरफ से,वैसे तो में सुचना प्रोध्धिकी से सम्बंध रखता हु.मगर हरियाणा की पावन धरती पर जन्म होने के साथ से ही हरियाणवी लोक संस्कृति कला जैसे रागिणी -सांग और अन्य बहुत सारे अच्छे विचारो से जुड़ा हुआ हु .यह इस पेज पर में हरियाणवी सांग कला अपनी समज के अनुसार विश्लेषण कर रहा हु।कृपया पूरा जरुर जांचे & सुझाव दे .
हरियाणा जैसे नाम से ही पता लग जाता है की हरि मतलब भगवान श्रीकृष्ण & देवी देवतओं के संगर्ष की भूमि रहा है.हरियाणा आदिकाल
से
साहित्य
व
कला
से
परिपूर्ण
रहा
है.आजकल दुनिया में अपने खेल और कला से सबको मोहित कर रहा है .एक से एक स्कूल, कलेज , विश्वविघालय बन गए है .हरियाणा जिसका नाम आते ही अपने आप मानस के मन में एक सुन्दर चित्रण आता है .यही
वह
पावन
धरा
है
,जहां
ऋषि-मुनियों
ने
वेदों
की
रचना
की,भगवान
श्री
क्रष्ण
ने
गीता
का
उपदेश
इसी
धरती से
दिया,जिसने
दुनिया
को
कर्म
के
मार्ग
का
अहसास
करवाया|यह
भूमि
सदा
साहित्य
व
संस्कृति
के
विद्वानों
की
जननी
रही
है|हरियाणा
की
धरती
हमेशा
से
ही
सांस्कृतिक
रूप
से
उर्वरा
रही
है|जहां
नेक
साहित्यकारों
एवम
संगीतकारों
ने
जन्म
लिया
और
हरियाणे
की
अपनी
लोक
संस्कृति
को समृद्ध करते रहे हैं|इन्ही महाकवियों मे हरियाणा के "कवि शिरोमणि
पंडित लक्मीचंद और मांगे राम नोरतनी सांगी",जिन्होंने हरयाणवी में अनेक लोक प्रिय सांग रचे तथा उन्हें
लोक मानस के लिए मंचित भी किया|उनकी रचनाएँ जो आज भी जन मानस के बीच अपनी पहचान रखती
हैं.ईशश्वर प्रकृति और मानव भावनाओ का हमारे देश में अभियंजन नाट्य रासलीला ,रामलीला ,भजन,रागिणी-गायन पद्दति से हुआ है वेसा किसी अन्य विधा से नही। यह रचनाये कंठ -गायन के माध्यम से ही जीवित रही है .लीखित भाषा का विकास तो बहुत बाद में हुआ है। हरियाणा एवम भारत के जीवन दर्शन और संस्कृति ने सारे विश्व के इतिहासकारों ,दार्शनिको और कलाप्रेमियो को मोहित किया है .भारत की धरती को विशेषकर हरियाणा प्रदेश को अमीर खुसरो की स्वपन-भूमि कहा गया है हमारी संस्कृति का ओज और गंध अतुल्य है .हमारी संस्कृति ने कई सभ्यताओ को पीछे छोड़ दिया है .जो इतिहास के पन्नो में सम्मा गयी .
हमारे पूर्वजो ने हर ऋतू -उत्सव पर वैदिक स्वरों का उच्चारण किया है और दूसरी तरफ उन्होंने पत्थर में संगीत भरने के प्रयास से सुंदर पाषाण -प्रतिमाओ को तराशा ,जो दुनिया में मानव -खूबसूरती से कही बढकर है हरिवश पुराण नाट्य परम्परा का वर्णन है।और यह रामायण के अभिनेताओ की कहानी है लगभग 140 ईस्वी पूर्व रचित पताज्लय म्हाभाषय में श्रीकृष्ण और कंश का अभिनय करने वाले तो दड़ो का वर्णन है हरियाणा का लोकनाट्य जैसे रागिनी एवम सांग भी लोक संस्कृति के रूप में विकसित इन परम्पराओ का ही चित्रण है
सांग -रागिणी संगीत और न्रत्य का कला-संगम है जिस तरह सावन की हवाए और फाल्गुनी ऋतू की गंध किसान को मोह लेती है ठीक इस्सी प्रकार सांग का संगीत भी मनन और आत्मा पर जादू का काम करता है सांग-रागिनी कला -अभिव्यक्ति होने के साथ साथ जनसमुदाय का मनोरंजन है ,अमीर या गरीब ,उच्च या पिछड़े हुए,युवा-वृद्ध ,सभी तो सांग-रागिणी मंच को मानव-दर्शक मानकर स्मनाभुती का आनंद लेते है
वैसे तोह सांग-परम्परा भारत में खूब प्रचलित है जैसे राजस्थान में तमाशा ,तुर्री ,कलगा ,गुजरात में भवाई ,उतरप्रदेश में नोटंकी और हरियाणा में सांग-रागिनी के रूप में मिलता है . ठीक उसी तरह सांग-रागिणी भारत में बहुत सदियो से चला आ रहा है
अगर हरियाणा विशेष की बात करे तो कहते है कि सांग-रागिणी यानि लोकन्रत्य का जन्म और विकास श्री किसन लाल भाट के साथ सनं 1730 से हुआ .उस समय के कथानक -नोटंकी और लेला-मजनू ।श्री किसन लाल भाट के समय से विवाह , त्यौहार , मेले ,कुश्ती-दंगल और पूजन के अवसर तथा सामाजिक धन इकठ्ठा करने के लिया किया जाता था किसन लाल के सांगो का इतिहास में ज्यादा वर्णन नही है परन्तु उन्होंने बहुत प्रयास किया .उनके बढ़ श्री बंसी लाल नमक सांगी ने 19वी सदी में कुशल अभिनय किया .बंसीलाल के सांग कोरवी एरिया अम्बाला और जगादरी में होते थे उनके बढ़ सांग का डंका बजाय अलिबक्श ने दरुहेडा ,रेवाड़ी ,मेवात और भरतपुर में .इनके प्रसिद सांग पदमावत ,कृष्णलीला ,निहालदे ,चंद्रावल और गुलाबकली रहे .उनके बाद श्री बालकराम ने कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर की परिधि में पूरण भगत ,गोपीचंद और शीलादे जैसे चर्चित सांगो की रचना की .इनके बाद मेरठ के पंडित नेतराम का भी अहम संघर्ष बताया गया है .फिर 20वी सदी के सूत्रधार रहे लोक कवि छज्जू-राम के सिशय शेरी-खांडा (सोनीपत )निवासी दीपचंद का वर्णन है .अंग्रेजी शासन ने उनके सांगो को सैनिक -भर्ती में इस्तेमाल किया -उनकी कुछ बाते :-
"भरती होल्ये रे ,थारे बाहर खड्डे रंग-रूट ।
आड़े मिल्ले पाट्या -पुराना ,उड्ड मिले फुल बूट "
पंडित दीपचंद के प्रसिद सांग थे - सोरठ ,सरंणदे,राजा -भोज ,नल-दमयंती ,गोपीचंद ,हरिशचंद्र ,उतानपाद और ज्ञानी-चोर ।
पंडित मांगे राम जी ने भी कहा है :-
"दीपचंद के खीमा कतुबी धोली चाद्दर ओदया करते
ओले -सोले डूंगे लाके ,हाथ तले ने काड्या करते "
दीपचंद जी के बाद पंडित मांगेराम जी और सूर्य कवि लख्मीचंद जी के बीच में बहुत बड़े बड़े और और नामी सांगी एवम रागिणी कलाकार हुए ,कुछ प्रसिद और विख्यात के नाम इस प्रकार से है:-हरदेव (गोरड ) ,बाजे भगत (सिसाना ),सरुपचंद (दिसोर खेडी )मानसिंह (सैदपुर ),निहाल (नाँगल ),सूरजभान (भिवानी),हुकमचंद (किसमिनाना )धनसिंह (पुठी ),अमर सिंह और चितरु लोहार .इन्होने अपने सांगो में भजन -रागिणी ,चमोले ,शेर और ग़ज़ल का प्रयोग किया हरदेव के शिष्य बाजे भगत सूर्य कवि लख्मीचंद से पहले खूब प्रसिद हुए .बताके है कि बाजे भगत ने सांग -संगीत में खूब सुधार किया . पंडित लख्मीचंद का युग 1920 से 1945 का रहा है .वैसे तो आज भी उनकी ख्याति जग -जाहिर है उन्होंने एक ओर तो जीवन दर्शन को अभिव्यक्त किया और दूसरी ओर संगीत कला और दर्शन की दरोहर कालान्तर में इस धरती ने प्राप्त की है .पंडित लख्मीचंद जी ने गीताज्ञान सुप्रसिद सांग पदमावत में विश्लेषण किया:-
"लख्मीचंद छोड़ अब सब फण्ड ,
मिलेगा कर्म करेका फल दण्ड "
वही देवीय रागिणी में कहते है :-
"लख्मीचंद किसने रच दिया यो जग सारा,
हे देबी मइया ,कद होगा दरस तुम्हारा"
पंडित लख्मीचंद जी के बारे में जितना लिखा जाये उतना कम पड़ेगा।बल्कि मेरी ये जानकारी बहुत कम ही कम रहेगी उनके बारे में मगर अपनी समज को उनके बारें में को व्याप्त करते हुए मेरा मानना है की उन्होंने लगभग 2500 रागिणी और 1000 नई लोकधुनो का विकास किया .लख्मीचंद का युग हरियाणवी सांग-रागिणी कला में सुनहेला युग रहा।वही उनके अपने मृत्यु से पहले ही एक रागिणी में लिखा था
"कुछ दिन'के में सुन लियो रह लोगो,लख्मीचंद ब्राहमण मरगया "
वैसे उनकी कल्पना आजकल सत्य साबित हुयी है।.चाहे अपनी मृत्यु या आने वाले युग की कल्पना की हो।.लख्मीचंद जी के देहांत के बाद कहा जाता है की हरियाणा के सांग -रागिणी कला के स्वर्णयुग का अंत हो गया है मगर पंडित मांगे राम सांगी (पांची -सोनीपत वाले) ने अपनी गुरु-भक्ति के साथ साथ इस युग को कायम रखा .हरियाणवी सांग के सबसे बड़े स्तंब रहे लख्मीचंद जी के बाद पंडित मांगे राम जी का नाम आज भी सबसे उपर आता है उन्होंने अपने गुरु के नाम को भी सूर्य की भांति चमकाया.पंडित मांगे राम सांगी ने अपनी गुरु-सवांद को एक रागिणी में बताया की उनके गुरु जाटी गाँव में ब्रह्मा -विष्णु और शिव के समान है और स्वयम को तेरती हुई गुरु-ज्ञान की नोका के सिर्फ यात्री है। यही गुरु-भक्ति पंडित मांगेराम जी को अमर कर गई :-
"मेरे होये का आनंद न मरे का शोक ,दिल पत्थर किसा क्र रहया सू
दुःख-दरद का बोझ देवकी ,अपने सिर पर धरया रहय सू
ब्रह्मा -विष्णु शिवजी भोला ,सब जाण लिए मने जाटी के महा
गंगा यमुना त्रिवेणी मन्ने,मान्य लिए जाटी के महा "
कहते है कि पंडित मांगेराम जी रिश्ते में तो पंडित लख्मीचंद जी के चाचा लगते थे और हम उमर भी थे ,फिर भी गुरु-ज्ञान से मांगेराम जी ने गुरु भक्ति को सर्वोपरी रखा .इस सन्दर्भ में कृष्ण जन्म , कृष्ण-सुधामा धरु -भगत ,गोपीचंद,चन्द्रहास और चापसिंह एवं शकुंतला जैसे सुप्रिसिद सांगो का डंका पुरे हरियाणा तथा आसपास के प्रान्त के गाँव गाँव में भी बजाया.पंडित मांगेराम जी ने सारे सांग इतिहास को एक रागिणी में पिरो दिया . ये कविता और देशभक्ति की भावनाओ को लोगो तक पहुंचाते थे इन्होने कहा है :-
"हरियाणा की कहानी सुनलो दो सो साल की ,
कई किस्म की हवा चाली न्हई चाल की "
मांगेराम जी के साथ साथ पंडित लख्मीचंद जी के अन्य शिष्य जैसे रतिराम,सुल्तान ,माईचंद और चन्दन आदि भी सांग करते रहे परन्तु पंडित मांगेराम जी की तरह नाम नही पा सके .मगर उनके साथ साथ दनपत सिंह ने भी लोगो को बहुत मोहित किया उन्होंने प्रसिद सांग लीलो-चमन ,ज्ञानी-चोर,सत्यवान-सावित्री ,बनदेवी आदि .दनपत सिंह ने सांग-रागिणी में दान देने को बहुत चर्चित किया।तब के बाद स्कूल ,धर्मशाला ,गोशाला और चोपाल के लिए सांग में ही लाखो रूपए इकठे हो जाते थे .दनपत सिंह के बाद रामकिसन ब्यास ने भी 1990 तक संगो की रचना की वो जनमानस पर छाए रहे आजकल इन सब महान कवियों के शिष्य सांग कर रहे है.हरियाणवी सांग-रागिणी कला को हजारो कलाकार आगे बढा रहे है। कृपया आप भी सहयोग करे व आजकल रागनिणयो के नाम पर हो रही अश्लीलता का समर्थन न करे व हरियाणवी कला साहित्य की रक्षा करे
में Anil Parashar आपको हार्दिक धन्यवाद देता हु इस ब्लॉग को अपना कीमती समय देने के लिए.आपके सभी सुझाव का में स्वागत करूंगा कुछ भूल या अधूरी जानकारी लग्गे तोह माफ़ करना मगर सुझाव और कमेन्ट जरुर देना इस बारे में।
अनिल पाराशर
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Note:- Above all content is copyrighted (c)2012.
्क को समृद्ध करते रहे हैं|इन्ही महा कवियों में से हुएं हैं हरियाणा के "कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम सांगी",जिन्होंने हरयाणवी में अनेक लोक प्रिय सांग रचे तथा उन्हें लोक मानस के लिए मंचित भी किया|उनकी रचनाएँ जो आज भी जन मानस के बीच अपनी पहचान रखती हैं|उन्होंने अपने गुरु के नाम को भी सूर्य की भांति चमकाय